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Ranchi Feb 24,2017 :
राज्यपाल करेंगी दो दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय कान्फ्रेंस का उद्घाटन
झारखण्ड केन्द्रीय विश्वविद्यालय में ‘लुप्तप्राय एवं कम-प्रचलित भाषाओं’ विषय पर दो दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय कान्फ्रेंस का आयोजन
झारखण्ड केन्द्रीय विश्वविद्यालय का आदिवासी लोकगीत, भाषा एवं साहित्य केन्द्र 25-26 फरवरी को ‘लुप्तप्राय एवं कम-प्रचलित भाषाओं’ विषय पर दो दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय कान्फ्रेंस का आयोजन कर रहा है। इस अन्तर्राष्ट्रीय कान्फ्रेंस का उद्घाटन राज्यपाल माननीय द्रौपदी मुर्मू द्वारा किया जाएगा। कान्फ्रेंस का मुख्य विषय लुप्तप्राय एवं कम-प्रचलित भाषाओं के दस्तावेजीकरण, नीति, लिपियां एवं अंतर-अनुशासनिक दृष्टिकोण है।
कान्फ्रेंस में भाषा के विलुप्तीकरण की वर्तमान स्थिति एवं उन्हें रोकने के लिए किए जा रहे प्रयासों, भाषा के दस्तावेजीकरण की समस्याओं, भाषा के पुनरोद्धार में तकनीक का उपयोग, लुप्तप्राय भाषाओं का विश्लेषण एवं इनके लिए संसाधनो एवं तकनीक का विकास आदि विषय भी शामिल हैं। इस कान्फ्रेंस में देश-विदेश से लगभग 150 प्रतिभागी शामिल होंगे एवं 50 से अधिक शोध पत्र प्रस्तुत किये जायेंगे। इसमें भारतीय लुप्तप्राय भाषाओं के दस्तावेजीकरण एवं उनके पुनरोद्धार पर हो रहे शोध कार्यों का विश्लेषण भी किया जाएगा।
कान्फ्रेंस के मुख्य वक्ता जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रो. प्रमोद पाण्डेय, वेलेफेल्ड विश्वविद्यालय के प्रो. गिब्बन, सोएस विश्वविद्यालय, लन्दन के प्रो. पीटर के आस्टिन, हैदराबाद विश्वविद्यालय के प्रो. के.वी.सुब्बाराव, माइक्रोसोफ्ट के डा. मोनोजीत चैधरी एवं अन्य विशेषज्ञ हैं। इस कान्फ्रेंस का आयोजन झारखण्ड केन्द्रीय विश्वविद्यालय के आदिवासी लोकगीत, भाषा एवं साहित्य केन्द्र, भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर एवं माइक्रोसाॅफ्ट रिसर्च के संयुक्त तत्वावधान में किया जा रहा है।
कान्फ्रेंस पूर्व वर्कशोप का आयोजन
इस अन्तर्राष्ट्रीय कान्फ्रेंस के पूर्व में आज एक वर्कशोप का आयोजन किया गया जिसमें एसओएएस विश्वविद्यालय, लन्दन के प्रो. पीटर के. आस्टिन ने भाषाई दस्तावेजीकरण, मेटा डेटा एवं इससे संबंधित विषय पर अपनी प्रस्तुती दी एवं विषय को विस्तारपूर्वक समझाया। विश्वविद्यालय के जनसंचार विभाग के विभागाध्यक्ष डा. देवव्रत सिंह ने अपने वक्तव्य में कहा कि भाषा के संवर्धन एवं प्रसार में पोपुलर मीडिया की अहम भूमिका है। लुप्त होती भाषाओं के दस्तावेजीकरण के लिए भी सभी प्रकार के मीडिया का उपयोग किया जाना चाहिए। उन्होंने रेखांकित किया कि डिजिटल मीडिया में लुप्त हो रही भाषाओं के फोंट एवं कीबोर्ड का विकास सरकार को करना चाहिए। देशज संस्कृति अध्ययन केन्द्र की विभागाध्यक्ष डा. सुचेता सेनगुप्ता ने भी अपने विचार रखे। इस वर्कशाप में कान्फ्रेंस के संयोजक डा. रविन्द्र सर्मा एवं डा. सुधांशु शेखर एवं विश्वविद्यालय के शोधार्थियों एवं विद्यार्थियों ने सहभागिता की।