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Ranchi Feb 25,2017 :
अपनी भाषा के संरक्षण से ही हमारा विकास संभव: राज्यपाल
झारखण्ड केन्द्रीय विश्वविद्यालय में ‘लुप्तप्राय एवं कम-प्रचलित भाषाओं’ विषय पर दो दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय कान्फ्रेंस का उद्घाटन
झारखण्ड केन्द्रीय विश्वविद्यालय के आदिवासी लोकगीत, भाषा एवं साहित्य केन्द्र द्वारा ‘लुप्तप्राय एवं कम-प्रचलित भाषाओं’ विषय पर दो दिवसीय अन्तरराष्ट्रीय कान्फ्रेंस का उद्घाटन करते हुए माननीय राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि भारत में आधुनिकता के प्रभाव के कारण भाषाएं अपनी पहचान खोती जा रही हैं। आज दुनिया में कुल 6000 भाषाओं में से 96 प्रतिशत भाषाएं विलुप्त होने की कगार पर हैं। हमें जापान और चीन को देखकर ये सीखना चाहिए कि अपनी भाषाओं को संरक्षित रखकर ही हम विकास के मार्ग पर आगे बढ़ सकते हैं। उन्होंने कहा कि आज शहरों में जिस हर्बल उत्पादों की लोग बात कर रहे हैं वे आदिवासी समाज और संस्कृति की ही देन हैं और आदिवासी भाषाएं विलुप्त हो जाएंगी तो ये भी खत्म हो जाएगा। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि विविध आदिवासी संस्कृतियों पर भारतवासियों को गर्व होना चाहिए।
अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. नंद कुमार यादव ‘इंदु’ ने कहा कि विश्वविद्यालय लुप्तप्राय भाषाओं के संरक्षण एवं उसके दस्तावेजीकरण की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य कर रहा है और यह कान्फ्रेंस उसी की कड़ी में एक कदम है। उन्होंने यूनेस्को की रिपोर्ट को उद्धृत करते हुए कहा कि भारत की 196 भाषाएं खतरे में हैं जो दुनिया में सबसे अधिक है।
उद्घाटन सत्र में बीज वक्तव्य देते हुए जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के भाषाविद् प्रो. प्रमोद पाण्डेय ने भाषा के लिपि निर्माण की समस्या, भाषा के दस्तावेजीकरण और इनमें डिजिटल तकनीक के उपयोग की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि ब्राह्मी लिपि को दूसरे देशों में भी अपनाया जाता है। इस अवसर पर सोएस विश्वविद्यालय, लन्दन के प्रो. पीटर के आस्टिन, ई.एल.के.एल. के चेयर लखनउ विश्वविद्यालय के प्रो. कविता रस्तोगी, सी.आई.आई.एल. के डा. सुजोय एवं विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो. आर.के. डे ने भी अपने विचार रखे।
कान्फ्रेंस का मुख्य विषय लुप्तप्राय एवं कम-प्रचलित भाषाओं के दस्तावेजीकरण, नीति, लिपियां एवं अंतर-अनुशासनिक दृष्टिकोण है। कान्फ्रेंस में भाषा के विलुप्तीकरण की वर्तमान स्थिति एवं उन्हें रोकने के लिए किए जा रहे प्रयासों, भाषा के दस्तावेजीकरण की समस्याओं, भाषा के पुनरोद्धार में तकनीक का उपयोग, लुप्तप्राय भाषाओं का विश्लेषण एवं इनके लिए संसाधनो एवं तकनीक का विकास आदि विषय भी शामिल हैं। इस कान्फ्रेंस में लगभग देश-विदेश के 150 प्रतिभागी शामिल हो रहे हैं एवं अगले दो दिनों में 50 से अधिक शोध पत्रों को प्रस्तुत किया जाएगा। इसमें भारतीय लुप्तप्राय भाषाओं के दस्तावेजीकरण एवं उनके पुनरूद्धार पर हो रहे शोध कार्यों का विश्लेषण भी किया जाएगा। कान्फ्रेंस का आयोजन झारखण्ड केन्द्रीय विश्वविद्यालय के आदिवासी लोकगीत, भाषा एवं साहित्य केन्द्र, भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर एवं माइक्रोसोफ्ट रिसर्च के संयुक्त तत्वावधान में किया जा रहा है। कान्फ्रेंस के संयोजक डा. रविन्द्र सर्मा ने धन्यवाद ज्ञापन किया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के शिक्षकगण, अधिकारी, कर्मचारी एवं विद्यार्थी उपस्थित थे।